रविवार, 23 अक्तूबर 2011

दिवाली के नाम पर..........

दीपावली
वर्ष में एक बार मनाते है,
हम
महावीर के सन्देश
(जियो और जीने दो)
जन जन को सुनाते है !
और उन्ही दिनों
हम
उस पर 
कहाँ चल पाते है !
सारी रात
अपने ही हाथ
आतिशबाजी चलाते है
लाखो जीवो का जीवन मिटाते है !
और हमारे नोजवान साथी
कहा जुआ छोड़ पाते है ?
वह तो जुए में सारी रात जग जाते है !
न मालूम, हम ऐसे
कितने पाप कमाते है ?
कहा हम दिवाली मनाते है ?
सब लोक घरो में,
मिठाइयाँ खाते है
और
दीपक की रौशनी लगाते है,
फिर भी, जीवन में
प्रकाश नहीं
अँधेरा ही पाते है
कहाँ हम दिवाली मनाते है ?
बुरा न मानो
बंधुओ !
हम दिवाली के नाम पर
महावीर को लजाते है
यूँही जीवन के कई वर्ष निकल जाते है !
न हम दिवाली मना पाते है,
न हम महावीर को मान पाते है !